फारबिसगंज(अररिया),जासं: बाल मजदूरों के लिए बनायी गयी सरकारी और गैर सरकारी नीतियों का सकारात्मक परिणाम अभी तक दूर की कौड़ी बनी हुई है। बाल श्रमिकों को अभी भी उनके कार्य स्थलों से हटा कर शिक्षा की दहलीज तक नहीं पहुंचाया जा सका है। होटलों, चाय नाश्ते की दुकानों में बच्चे कार्यरत हैं ही, ईंट-भट्ठों में इनकी मौजूदगी सरकारी दावों की पोल खोल रही है। यहां बच्चों की मासूमियत मिट्टी के साथ ही गुंथी चली जा रही है।
सीमावर्ती क्षेत्र के अधिकांश ईंट-भट्ठों में बाल मजदूर काम पर लगे हुए है। इन ईंट-भट्ठों में बाल मजदूरों से कम पारिश्रमिक पर काम लिया जाता है। बच्चों के ऊपर हो रहे इस शोषण को ईंट-भट्ठों में देखा जा सकता है। नाबालिग बच्चों से ईंट-भट्ठों में मिट्टी गूथने, पानी ढोने, ईट बनाने सहित काम करवाये जाते है। इन ईंट-भट्ठों में क्षेत्र के स्थानीय बाल मजदूर ही रहते है। अधिकांश बाल मजदूर बंगाल से बुलाये जाते है जिनके माता-पिता भी उसी ईंट-भट्ठों में काम करते है। सूत्र बताते है कि बाल श्रमिकों खासकर लड़कियों के साथ शारीरिक शोषण किया जाता है। जिसका विरोध गरीब मजदूर परिवार नहीं कर पाते है। ईटों के बीच बच्चों का भविष्य अंधकारमय है। फारबिसगंज के नव पद स्थापित श्रम निरीक्षक मुनी लाल चौधरी के अनुसार बाल श्रम करवाने वालों के खिलाफ कई बार कार्रवाई की गयी है। प्राथमिकी भी दर्ज होती रही है। लेकिन इस कार्रवाई के बावजूद ईंट-भट्ठों, चाय, नाश्ता की दुकानें, होटलों में बच्चों से काम करवाये जाने की सूचना मिल रही है। श्री चौधरी ने कहा कि बाल श्रम को लेकर जिला प्रशासन के स्तर पर टास्क फोर्स बनाने की तैयारी चल रही है। कार्रवाई भी शीघ्र होगी।
सीमावर्ती क्षेत्र में दर्जनों ईंट-भट्ठों बाल शोषण का केंद्र बना हुआ है। अकेले बथनाहा तथा फारबिसगंज में करीब आधा दर्जन ईंट-भट्ठों ऐसे है जहां बच्चों से दिन भर काम करवाया जा रहा है। बदले में बेहद कम पारिश्रमिक दिया जाता है। बताया जाता है कि इन ईंट-भट्ठों में बाल श्रम को रोकने के लिए पहले भी प्रशासन द्वारा प्रयास किये गये। लेकिन आर्थिक मुद्रा मोचन खेल या बच्चों की मासूमियत दावं पर लगायी जाती रही है। यहीं वजह है कि चाय, नाश्ता, होटलो, ईंट-भट्ठों से बाल श्रम को समाप्त नहीं किया जा सका है। करीब आठ माह पूर्व कुछ होटलों, नाश्ते की दुकानों में छापामारी कर कुछ बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया। पिछले चार पांच माह से जिला में बाल श्रमिक विद्यालय भी बंद पड़ा हुआ है।
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