Wednesday, December 15, 2010
मछली नहीं जहर खा रहे हैं लोग
अररिया, निसं: बाजारों में मिल रही मिलावटी खाद्य पदार्थ की तरह अब मछलियां भी सुरक्षित नहीं रही। मछलियों में भी मिलावट का धंधा जोर पकड़ रहा है। यह धंधा किसी खाद्य पदार्थ की तरह नहीं बल्कि रासायनिक दवा डालकर की जाती है। चिकित्सक की मानें तो आंध्र प्रदेश एवं अन्य प्रांतों से आने वाली मछलियों को सुरक्षित रखने के लिए उसमें फोरलिन नामक दवा डाली जाती है जो जहर के समान होती है। डा. एसके सिंह का मानना है कि दवा युक्त मछलियों के सेवन से कैंसर जैसे असाध्य रोग से पीड़ित होने की आशंका बढ़ जाती है। जांच का विषय यह है कि मछलियों में कितनी मात्रा में दवा डाली गयी है। जिले के 80 प्रतिशत लोगों को बाहरी मछलियों पर निर्भर होना पड़ रहा है। शादी ब्याह हो या फिर अन्य आयोजन, देशी मछलियों की कमी के कारण लोगों को आंध्रा की मछलियां खरीदने के लिए विवश होना पड़ता है। जो देखने में आकर्षक एवं बड़ी बड़ी तो होती है लेकिन ताजा बिल्कुल नहीं। बताया जा रहा है कि आंध्र प्रदेश से आने वाली मछलियां इस क्षेत्र में आठ दिन बाद पहुंचती है। आंध्र प्रदेश से मछलियां उत्तर बिहार के सिलीगुड़ी, मालदह एवं अन्य शहरों में स्थित बड़े बड़े गोदामों में पहुंचते है। उसके बाद छोटे छोटे व्यापारियों के माध्यम से बाजारों में पहुंचाया जाता है। इस दौरान उसे लगातार बर्फ की सिल्लियों पर रखी जाती है। फिर मछली को फोरलीन की सूई डालकर ताजा दिखने लायक बनाया जाता है। मछली के शौकीन लोग इसे ताजा जानकर खरीदते तो हैं लेकिन वह कई कई दिनों का होता है। ऐसे खरीददारों को तब पता चलता है जब मछली खाने में स्वादहीन लगती है। इधर कई मछली व्यापारियों का कहना है कि वे लोग प्रतिदिन एक क्विंटल मछली स्टाक में रखते है। स्टाक वाली मछली को तबबेचा जाता है जब दूसरे दिन मछली उनके पास पहुंच जाती है। इस दौरान मछली में बर्फ एव दवा डालने की प्रक्रिया लगातार जारी रहती है।
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