Monday, April 30, 2012

बांग्लादेश व नेपाल की ओर हो रही पशु तस्करी


नरपतगंज (अररिया) : दुधारु मवेशियों की लगातार घटती संख्या से अब गांवों में भी पर्याप्त कीमत देने के बावजूद दूध उपलब्ध नहीं हो रहा है, गांवों में भी दूध की किल्लत हो गई है। सात-आठ वर्ष पूर्व नरपतगंज प्रखंड के खेतिहर किसानों का मवेशी पालन एक प्रमुख धंधा था तथा दूध का व्यवसाय कर वे हंसी खुशी जीवन यापन करते थे। बताया जाता है कि पहले नरपतगंज ही फारबिसगंज में दूध की मांग पूरी करता था। फारबिसगंज जाने वाली ट्रेन पर अक्सर खिड़की में कड़ी के सहारे लटके दूध के कनस्तर नजर आ जाते थे। दूध का व्यवसाय करने वाले दहियार के नाम पर ही दरगाहीगंज गांव का नाम पड़ा। लेकिन ट्रेनों में अब दहियार नजर नही आते है।
नाकेबंदी के बावजूद पशुओं की तस्करी परवान पर
यूं तो जिले के चारों तरफ पुलिस की नाकेबंदी है, इसके बावजूद पशुओं की तस्करी अलग-अलग रास्ते से हो रही है। जबकि उनके पास इसका कोई कागजी प्रमाण नहीं है। बांग्लादेश की ओर पशुओं की तस्करी अररिया के रास्ते पहले से होती रही है। पशु तस्करों ने अब एक और नया रूट खोज निकाला है। यह रास्त नरपतगंज नेपाल सीमा क्षेत्र के गांवों के रास्ते से हो रही है। जानकारी के अनुसार सीमापार नेपाल के इनरवा जिला में नरसिंह में आधुनिकतम चाइना कसाई फैक्ट्री खुली है। वहां प्रतिदिन 200-300 पशुओं की मांग है। इस फैक्ट्री से मांस की पैकेजिंग कर उसे चाइना अमेरिका सहित अन्य देश में भेजा जाता है। घुरना, बसमतिया, फूलकाहा, सोनापुर, बेला के तरफ से सीमा की तरफ जाने वाली पगडंडियों और नदियों के तटबंधों पर हांक कर आगे-पीछे तस्करों के आदमी हो लेते हैं और फिर मौका पाकर सीमा पार बैठे नेपाल के पशु तस्करों के हवाले कर देते हैं। हालांकि बार्डर पर एसएसबी जवान तैनात हैं और कभी-कभार मवेशी भी पकड़ाती है। हाल ही में घुरना थाना प्रभारी तस्करी की मवेशी को पकड़कर छोड़ दिया जाने का मामला मीडिया में प्रकाशित होने पर एसपी शिवदीप लांडे ने थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया था।
क्यों घट रहा दूध का कारोबार
जानकारों की मानें तो कोसी बाढ़ की विभिषिका ने क्षेत्र में चारे की समस्या उत्पन्न कर दी है। मवेशी के स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था न होना भी दूध के उत्पाद पर प्रतिकूल असर डाल रहा है।

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