अररिया : नगर परिषद चुनाव का बिगुल बज चुका है। नामांकन प्रक्रिया संपन्न होने के बाद प्रत्याशी मतदाताओं की चौखट पर दस्तक देने लगे हैं। लेकिन इस बार के चुनावी समर में जनता उनसे शहर के भावी विकास की रुपरेखा का जानना चाह रही है। वहीं, निवर्तमान पार्षदों से विकास का हिसाब मांगने की भी तैयारी की जा रही है। जिन्होंने काम किया है, वे तो मस्त हैं, पर पांच साल मस्ती काटने वाले अभी से ही पस्त नजर आ रहे हैं। ऐसे लोगों का प्रचार अभियान फिलहाल ठंडा पड़ा हुआ है।
इस बार चुनावी तरकस से निकलने वाले जात व धरम के तीर उतने असरदार नहीं दिख रहे। जात पर जमात हाबी है तथा जमात पर विकास का भूत चढ़ा हुआ है। नगर वासियों को तो विकास चाहिये, जो काम करेगा उसे वोट मिलेगा।
कई निवर्तमान उम्मीदवारों की ओर से 'काम किया है काम करेंगे' का नारा दिया जा रहा है तो कुछ अपने को विकास के प्रति समर्पित बता रहे हैं।
वहीं, इस चुनाव में विगत दस सालों में हुए घपले घोटालों की दुर्गध भी असर डाल रही है। घपलों की कोख से उपजी राजनीति चुनावी युद्ध का प्रमुख कारक होगी।
जानकारों की मानें तो नगर परिषद क्षेत्र के विकास के लिए पचासों करोड़ रुपये आये, लेकिन धरातल पर कुछ खास नजर नहीं आ रहा। कुछ वार्डो में नाला व अच्छी सड़कें जरूर बनी हैं, लेकिन अधिकांश वार्डो में विकास के नाम पर लूट अधिक हुई है। नाले हैं तो उनसे पानी नहीं बहता, सड़कें हैं तो उन पर चलना दुर्घटनाओं को आमंत्रण देने जैसा है।
नाला निर्माण के नाम पर करोड़ों खर्च हुए, लेकिन जल जमाव अभी भी हो रहा है। अधिकतर नालों से पानी की निकासी नहीं होती। वे मच्छरों का उत्पादन केंद्र बनकर रह गये हैं।
नप क्षेत्र में विकास की एडवांस प्लानिंग हुई ही नहीं है। अगले दो तीन दशकों में विकास व मूलभूत नागरिक सुविधाओं पर पड़ने वाले दवाब का आकलन शुरू भी नही हुआ है।
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