अररिया, संसू: किसानों को आफत ही आफत। सैलाब आकर खेतों में लगी फसल बहा कर ले जाता है और कुछ बचा तो वह सुखाड़ की पेट में। महंगाई, शासन की उदासीनता एवं निचले स्तर तक व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण जिले के किसान हलकान हैं। उनके घरों में एक वक्त का चूल्हा भी जलना भी मुश्किल हो रहा है। अब तो वे त्रस्त होकर सरकार के सामने जाने देने तक की बातें करने लगे हैं।
वर्तमान समय गेहूं की बुआई का है। अधिकांश क्षेत्रों में बुआई भी हो चुकी है। लेकिन अब उन्हें पटवन की चिंता हो रही है। नहर भी सूखी पड़ी है। छोटे-मोटे तालाब भी हैं तो काफी दूर। किसी के खेत में बांस का बोरिंग भी लगा है तो उससे पानी लेने के लिए मशीन वाले दो प्रति घंटे की दर से रूपये लेंगे ही साथ में बोरिंग मालिक को भी रूपया चाहिए। किसानों का आरोप है कि न तो डीजल अनुदान का लाभ मिल रहा है और न ही सरकारी सुविधा का लाभ। जहां गेहूं की बीज काफी महंगे दामों पर खरीद की जा रही है। वहीं खाद व्यवसायी बेखौफ होकर दोगुने दामों पर खाद बेच रहे हैं। इन सब के बीच कृषि विभाग सिर्फ तमाशा देख रहा है और सुधार लाने व कार्रवाई की बात कह रहा है। खरैया बस्ती के किसान मो. तोहिद आलम के अनुसार खेती जुआ की तरह कर रहे हैं। हुआ तो अच्छा नही हुआ तो रोने के सिवाय कुछ भी नहीं। डम्हैली के किसान मो. मोहसीन कलीमुद्दीन ने बताया कि बैंक से भी कृषि के लिए ऋण नहीं मिलता है। सरकारी सुविधाओं का बंटवारा पंचायत के जनप्रतिनिधि ही कर लेते हैं। वहीं मो. जुबैर कहते हैं कि गरीब किसानों का कोई नहीं है। बोरिंग नहीं रहने से पटवन में बहुत रूपया खर्च हो जाता है। बांसबाड़ी गांव के बुर्जुग किसान मो. हसीब की माने तो खेती करने पर मुनाबिस दाम भी नहीं मिलता है। पहले की फसल सैलाब ले गयी अब बिना पटवन के गेहूं की फसल पर भी आफत की बादल मंडरा रही है।
बांसबाड़ी के ही मायानंद चौरसिया सरकारी व्यवस्था के खिलाफ है। उनका कहना है कि सब कुछ सरकार का लेकिन गेहूं की बीज, खाद आदि पर मिलने वाली सब्सीडी भी नहीं मिलती है। वे कहतें हैं कि पिछले पांच वर्षो में मेरी खेती अच्छी नहीं हो पायी है। जिस कारण न तो बच्चों को पढ़ा पा रहा हूं और न ही कुंवारी बेटियों की शादी कर पा रहा हूं। उनका कहना है कि सरकार अगर अनुमति दे तो उनके सामने ही जहरीली दवाई खाकर जान दे दूंगा।
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