अररिया : लोग कहते हैं कि किसी भी कार्य के निष्पादन में कोई न कोई अड़चन जरूर आती है। लेकिन अड़चन को आम सहमति से हल भी हल कर लिया जाता है। जैसा कि शहर में कचरा निस्तारण के लिये क्रय की भूमि में भी आवाजें उठी थी, लेकिन उस आवाज पर नगर परिषद के बोर्ड में न तो आम सहमति बनी और न ही उठाये गये आवाज पर नप प्रशासन ने गंभीरता दिखाई। नप प्रशासन यदि उस समय गंभीर होता तो शायद क्रय की जमीन को वापस कराने की नौबत नही आती। बुआरीबाध स्थित 16 लाख की जमीन को 57 लाख में खरीदने के मुद्दे पर वार्ड पार्षद गौतम साह ने प्रमंडलीय आयुक्त को आवेदन भेजकर आरोप लगाया था कि नप प्रशासन सारे नियमों को ताक पर रख कर जमीन का क्रय किया है। पार्षद ने आरोप लगाया था कि उक्त जमीन के क्रय में 40 लाख रूपये का हेराफेरी की गयी है। उन्होंने चेतावनी दिया था कि यदि इस प्रकरण की जांच नही हुई तो वे भूख हड़ताल पर बैठ जायेंगे। लेकिन कुछ दिन बाद ही सारे मामले ठंडे पड़ गये। दो वर्ष बाद अचानक यह मामला गरमाने के बाद कई अनसुलझे पहलुओं की पोल खोल दी है। जिला पदाधिकारी के निर्देश पर भले हीं जमीन मालिक नप प्रशासन को राशि वापस कर दिया है, लेकिन इसके पीछे जमकर बरती गयी अनियमितता के पीछे दोषी कौन। इस सवाल का जबाव आज लोग ढूंढ़ रहे है।
इधर जमीन क्रय के पीछे चौतरफा नियमों की धज्जिया उड़ाने की बातें सामने आयी है। सबसे पहले तो बारहवीं वित्त आयोग की राशि से जमीन क्रय नहीं किया जाना था। जमीन को एक हीं टुकड़ा में खरीदना में था, वह भी नहीं किया गया। इस मामले का रोचक पहलू तो यह है कि कोसी प्रोजेक्ट की 18 डिसमिल जमीन भी निबंधित करा लिया गया। नप को 191 डिसमिल जमीन मालिक ने रजिस्ट्री में दिखाया गया है, जबकि उक्त जमीन 173 डिसमिल हीं पाया गया। यानि मापी में भी गड़बड़ी।
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