अररिया : सामाजिक विसंगतियों के परम दस्तावेज व भारतीय लोक तंत्र की जड़ों को सींचने वाली औपन्यासिक महागाथा मैला आंचल की प्रेरणा स्रोत थी लतिका रेणु। अगर वे नहीं होतीं तो शायद मैला आंचल भी नहीं होता। अपने प्रेम व सेवा से उन्होंने एक कथाकार को गाते हुए गद्य का गायक बना दिया।
रेणु जी के पुत्र दक्षिणेश्वर के शब्दों में : छोटी मां ने बाबूजी को मौत के जबड़ों से खींच लाया था। अगर वे न होती तो मैला आंचल भी नहीं होता। बाबूजी ने मैला आंचल लिखा लेकिन छपाने के लिये उनके पास पैसे नहीं थे। छोटी मां ने ही अपने गहने बेच कर पुस्तक प्रकाशन के लिये पैसों का जुगाड़ किया।
देश की आजादी के संग्राम में रेणु जी ने प्रमुख भूमिका निभायी थी, लेकिन अग्रेजों के दमन में उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया था। इसी कमजोर शरीर ने उन्हें रोग शैया पर लिटा दिया। वे दो दो बार गंभीर रूप से बीमार पड़े। इलाज के लिये उन्हें पटना के अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। वहीं उनकी मुलाकात हजारीबाग की रहने वाली लतिका जी से हुई, जो उसी अस्पताल में नर्स के रूप में कार्यरत थीं।
रेणु की बीमारी देख सबने उनके जीवन की आशा त्याग दी थी, लेकिन लतिका की सेवा और बाद में प्यार ने उन्हें नया जीवन दे दिया। रेणु व लतिका ने सन 1951 में विवाह कर लिया।
रोग शैया से उठ कर रेणु जी ने दुनियां को मैला आंचल, परती परिकथा व तीसरी कसम जैसी अमर कृतियां दी।
श्री दक्षिणेश्वर के अनुसार लतिका जी हिंदी, बंगला व अंग्रेजी भाषाएं जानती थी तथा बीमार होने से पहले तक दैनिक जागरण व अन्यअखबार नियमित रूप से पढ़ती थी। उन्होंने पटना में अपना भवन व अन्य सामान फणीश्वर नाथ रेणु समाज सेवा संस्थान को बाकायदा गिफ्ट कर दिया है।
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